In this “Maharana Pratap Biography” section we will cover Rana Pratap Singh history, Maharana Pratap Biography in Hindi (महाराणा प्रताप की जीवनी) and many more interesting facts about Maharana Pratap short history in Hindi.
Maharana Pratap Singh के बारे में अकबर के दरबारी कवि अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने अपनी किताब में लिखा है- “इस दुनियां में सब कुछ नाशवान है। महाराणा प्रताप ने भले ही अपनी भूमि और सारी संपत्ति का त्याग कर दिया, लेकिन उन्होंने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिंदुस्तान के सभी राजाओं में महाराणा प्रताप ही एकमात्र ऐसे राजा हैं, जिन्होंने अपनी जाति और समाज के गौरव को बनाए रखा है।”
इतने महान थे भारतीय इतिहास के सूर्य स्वरुप महाराणा प्रताप। इनकी महानता और पराक्रम के किस्से आज भी लोग अपने बच्चों को सुनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मेवाड़ के लोग सुबह उठकर अपने देवताओं को नहीं बल्कि महाराणा (Maharana Pratap Singh) को याद करते हैं।
महाराणा प्रताप का जन्म, मृत्य और उनका परिवार
महाराणा प्रताप सिंह का जन्म 9 मई सन 1540 में राजस्थान के कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था। कुम्भलगढ़ का दुर्ग दुनियां की सबसे पुरानी पहाड़ियों में से एक अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है। बाद के दिनों में महाराणा का पालन-पोषण भीलों की कुका जाति के लोगों ने किया था। ये भील महाराणा को बहुत प्यार करते थे।
राणा प्रताप सिंह के पिता का नाम उदय सिंह और माता का नाम जयवंताबाई था। राणा प्रताप सिंह के बचपन का नाम कीका था। वे अपने पिता की 33 वीं संतान थे।
महाराणा प्रताप की कुल 11 पत्नियाँ थीं। इन 11 पत्नियों से उनको 17 पुत्र और 5 पुत्रियाँ थीं। उनका सबसे बड़ा पुत्र महारानी अजाब्दे का बेटा अमर सिंह थे।
महाराणा प्रताप की मृत्यु 29 जनवरी सन 1597 को अपनी राजधानी चावंड में हुई थी। धनुष की डोर खींचते वक़्त धनुष से उनके आंत में चोट लग गई थी। इलाज के दौरान 57 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया था।
Important Information of Maharana Pratap Biography in Hindi
जन्म —– | 9 मई सन 1540 |
जन्म स्थान —– | कुम्भलगढ़ दुर्ग, राजस्थान, भारत |
शासन —– | 1568-1597 |
पिता का नाम —– | राणा उदय सिंह |
माता का नाम —– | जयवंताबाई |
उत्तराधिकारी —– | अमर सिंह, सबसे जयेष्ट पुत्र, |
पत्नियों की संख्या —– | 11, सबसे बड़ी महारानी अजाब्दे का बड़ा बेटा अमर सिंह थे |
पुत्र एवं पुत्रियाँ —– | 17 पुत्र और 5 पुत्रियाँ |
सिहांसन की प्राप्ति —– | राणा उदय सिंह अपने दुसरे पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। किन्हीं और कारणों से महाराणा प्रताप को उनका उत्तराधिकारी चुना गया था। |
भाइयों में स्थान —– | महाराणा प्रताप अपने पिता की 33 वीं संतान थे। वे सभी 25 भाइयों में सबसे बड़े थे। |
ऐतिहासिक युद्ध —– | हल्दी घाटी की लड़ाई |
मृत्यु —– | 29 जनवरी सन 1597, 57 वर्ष की आयु में |
महाराणा प्रताप का राज्यकाल (Maharana Pratap Biography in Hindi)
महाराणा प्रताप (Rana Pratap Singh) सिसौदिया राजवंश के 54 वें शासक थे। उन्होंने 1 मार्च 1573 ईस्वी को अपना राजसिंहासन संभाला था। चित्तोड़ दुर्ग या चित्तोड़गढ़ Maharana Pratap Singh के राज्य मेवाड़ की राजधानी थी। चित्तोड़गढ़ का स्थान भारत के बड़े किलों में आता है। यह किला आज के चित्तोड़ शहर में स्थित है।
जब महाराणा प्रताप ने अपना राजसिंहासन संभाला था उस समय भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर समूचे भारत में मुग़ल शासक अकबर का साम्राज्य था। उस दौरान अकबर के डर से कई हिन्दू राजा उसकी अधीनता स्वीकार कर रहे थे। कितने हिन्दू राजा तो अकबर को अपनी बेटी सौंपकर उससे अपने रिश्ते मजबूत करने में लगे थे।
लेकिन उन सभी हिन्दू राजाओं से अलग, महाराणा प्रताप को मुगलों की अधीनता बिलकुल ही स्वीकार नहीं थी।
अकबर को पश्चिमी देशों से व्यापार आदि करने के रास्ते में मेवाड़ पड़ता था। अकबर किसी भी हाल में मेवाड़ पर अपना शासन चाहता था। लेकिन उसके रास्ते के सबसे बड़ा रोड़ा महाराणा ही थे।
अपनी अधीनता स्वीकार कराने के लिए अकबर ने महाराणा प्रताप को अपना प्रस्ताव भेजा जिसे महाराणा ने ठोकर मार दी थी।
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महाराणा द्वारा अपना प्रस्ताव ठुकराए जाने से आहत होकर अकबर ने हिन्दू राजा मान सिंह और आसफ खान के नेतृत्व में एक विशाल सेना चित्तोड़ को जितने के लिए भेजी। 18 जून 1576 को हल्दी घाटी के मैदान में अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप की मुट्ठी भर सेना के बीच भयंककर युद्ध हुआ।
कहा जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर जीत सका था और न ही महाराणा प्रताप हार पाए थे। इस युद्ध में एक छोटी सेना का नेतृत्व करते हुए महाराणा प्रताप ने अकबर की बड़ी सेना को दिन में तारे दिखा दिए थे। हल्दी घाटी के इस युद्ध की गिनती भारत के सबसे बड़े युद्धों में होती है।
10 Interesting Facts about Maharana Pratap Singh Biography
01. महाराणा प्रताप एक अजेय योद्धा थे
राणा प्रताप सिंह की लम्बाई साढ़े सात फीट (7’6″) और वजन 110 किलो से अधिक था। महाराणा प्रताप इतने मजबूत थे कि सिर्फ उनके शरीर के कवच का वजन ही 72 किलो का था। वे युद्ध भूमि में 81 किलो के भाले और और दो म्यान वाली भारी-भरकम तलवार लेकर लड़ते थे। उनके हाथों में इतना अधिक बल था कि अपने भाले की नोक पर एक साथ दो सैनिकों को टांग लेते थे।
02. युद्ध भूमि में एक वफादार मुसलमान ने बचाई थी Rana Pratap Singh की जान
सन 1576 ईस्वी में महाराणा प्रताप (Rana Pratap Singh) और अकबर की सेना के बीच हल्दी घाटी के मैदान में घमासान युद्ध हुआ। उस युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व राजा मान सिंह कर रहे थे। अकबर की विशाल सेना के सामने महाराणा की सेना मात्र मुट्ठी भर ही थी।
युद्ध के दरम्यान एक मुगल सैनिक ने महाराणा प्रताप पर पीछे से वार किया जिसे महाराणा के वफादार योद्धा हकीम खान सूरी ने अपने उपर ले लिया। उस जानलेवा वार से हाकिम खान सूरी मृत्यु को प्राप्त हुए लेकिन उन्होंने अपनी जान देकर महाराणा की जान बचा ली थी।
03. घोड़े के माथे पर हाथी का नकली सूंड लगाकर युद्ध भूमि में जाना
महाराणा प्रताप की एक खास विशेषता थ। वे जब भी युद्ध करने जाते थे तब अपने घोड़े के माथे पर हाथी का नकली सूंड लगा दिया करते थे। उनके ऐसा करने से घोड़ा हाथी की तरह भयानक दिखने लगता था।
04. जब महाराणा का बहादुर चेतक मुगलों को धुल चटाया
हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के साथ-साथ उनका प्यारा घोड़ा चेतक भी बुरी तरह से घायल हो गया था। अपने सरदारों के कहने पर महाराणा प्रताप को युद्ध भूमि से दूर जाना पड़ा था। महाराणा प्रताप घायल चेतक की लगाम थामकर युद्ध भूमि से चले गए।
उस समय दो मुगल सैनिक महाराणा के पीछे लग गए थे। लेकिन चेतक की तेज रफ़्तार के कारण दोनों मुगल सैनिक पिछड़ गए थे।
आगे रास्ते में एक 26 फीट चौड़ा पहाड़ी नाला था। पीछे से और भी मुगल सैनिकों के आने का खतरा था। चेतक घायल होने के बावजुद भी उस 26 फीट चौड़े नाले को एक ही छलांग में पार कर गया। नाले को पार करने के बाद चेतक वहीं लुढ़क गया। इस प्रकार महाराणा की जान बचाकर चेतक वहीं सहीद हो गया। जिस जगह पर चेतक ने अपना प्राण त्यागा था वहां पर आज चेतक का एक मंदिर है।
05. जब दुश्मन बने भाई शक्ति सिंह ने महाराणा (Rana Pratap Singh) की रक्षा की थी
हल्दी घाटी के युद्ध में एक बार महाराणा प्रताप को अत्यधिक घायल हो जाने की वजह से युद्ध भूमि से दूर जाना पड़ा था।
युद्ध के दौरान जब शक्ति सिंह की नजर महाराणा प्रताप के पीछे लगे उन दोनों मुगल सैनिकों पर पड़ी तब उनका पुराना भाई-प्रेम जग गया और उन्होंने महाराणा का पीछा कर रहे उन दोनों मुगल सैनिकों का पीछा किया और आगे पहुंचकर उन दोनों मुगलों को जहन्नुम पहुंचा दिया।
जबकि इस युद्ध में शक्ति सिंह महाराणा प्रताप को हराने के लिए अकबर की सेना के तरफ से लड़ रहे थे।
06. जब महाराणा प्रताप को अपने परिवार के साथ खानी पड़ी थी घास की रोटियां
यह घटना तब की है जब महाराणा प्रताप अकबर की सेना से छुप-छुपाकर जंगलों में अपने परिवार के साथ भटक रहे थे। एक बार तो ऐसा भी वक्त आया था जब दिन में पांच बार भोजन पकाया गया और पांचो बार बगैर खाए ही भोजन छोड़कर भागना पड़ा था।
एक बार महाराणा की पुत्रवधू ने जंगली घास के बीजों को पीसकर रोटियां पकाई थी। उनमें से आधी रोटियां बच्चों को खाने के लिए दे दी गईं और बची हुई आधी रोटियां बड़ों के लिए रख दी गईं।
इसी समय एक जंगली बिल्ली महाराणा की लड़की के हाथ से रोटी छिनकर भाग गई और वह बच्ची चीख मारकर रोने लगी। भूख से ब्याकुल लड़की के आँखों से आंसू टपक रहे थे। यह देखकर महाराणा भी रो दिए थे।
07. जब युद्ध में भीलों ने की थी महाराणा प्रताप की मदद
बचपन के दिनों में महाराणा प्रताप का पालन-पोषण कुका जाति के भीलों ने किया था। ये भील महाराणा के एक इशारे पर अपनी जान भी देने को तैयार रहते थे।
एक बार अकबर की सेना ने कुम्भलगढ़ किले को चारों तरफ से घेर लिया था तब भीलों ने जमकर अकबर की विशाल सेना से युद्ध किया और उसे किले के बाहर ही 3 महीने तक रोके रखा था।
एक घटना की वजह से किले के अंदर के पानी का स्रोत दूषित हो गया था। जिसके उपरांत महाराणा को किला छोड़कर कुछ दिनों के लिए बाहर रहना पड़ा था। इसके बाद कुछ दिनों के लिए अकबर की सेना का अधिकार कुम्भलगढ़ के किले पर हो गया था।
लेकिन कुछ ही दिनों के बाद इन भीलों की सहायता से कुम्भलगढ़ के किले पर महाराणा प्रताप का अधिकार फिर से हो गया था। इस बार महाराणा प्रताप ने अकबर के दो पड़ोसी राज्यों को भी अपने अधिकार क्षेत्र में मिला लिया था, जो कि अकबर के लिए एक बहुत बड़ा तमाचा था।
08. जब महाराणा प्रताप ने अकबर के प्रस्ताव को ठोकर मार दी थी
महाराणा प्रताप अपनी मातृभूमि और अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मर मिटने वाले महान इंसान थे। अकबर समूचे भारत पर एकछत्र राज करना चाहता था। अकबर महाराणा प्रताप से समझौते करने के लिए बड़े-बड़े प्रस्ताव भेजता था। महाराणा प्रताप अपने स्वाभीमान और मातृभूमि को अकबर की अधीनता से बचाने के लिए उसके सभी प्रस्तावों को ठोकर मार देते थे।
09. जब अकबर को भी महाराणा प्रताप (Rana Pratap Singh) की तारीफ़ करनी पड़ी थी
जब महाराणा प्रताप अकबर से छुपकर अपने परिवार के साथ जंगल-जंगल भटक रहे थे तब अकबर के एक गुप्तचर ने उन्हें देख लिया था। उस समय वे सभी भोजन कर रहे थे।
बाद में उस गुप्तचर ने आकर अकबर को बतलाया कि, महाराणा अपने परिवार और सेवकों के साथ बैठकर जो भोजन कर रहे थे उसमें जंगली फल-फुल, पत्तियां और पौधों की जड़ें थीं। लेकिन उनमें से किसी के भी चेहरे पर दुःख लेश-मात्र भी नहीं था। उन सभी के चेहरे से एक अजीब सा संतोष झलक रहा था। अपने गुप्तचर की यह बात सुनकर अकबर के दिल में अपने विरोधी महाराणा प्रताप के प्रति सम्मान पैदा हो गया था।
कहते हैं कि महाराणा प्रताप (Maharana Pratap Singh) की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर की आँखों में आंसू आ गए थे। इतने महान थे हमारे महाराणा प्रताप जी, जिनकी मृत्यु पर दुश्मन भी रोया था।
10. जब Maharana Pratap के जाल में फंसकर अकबर ने अपनी सेना गंवाया
महाराणा प्रताप अकबर से कभी नहीं हारे। उन्होंने अकबर के सभी सेनापतियों को हमेशा धुल चटाई। हल्दी घाटी के युद्ध के बाद अकबर ने तीन बार अपनी विशाल सेना भेजकर मेवाड़ को जीतना चाहा लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। वह महाराणा (Rana Pratap Singh) को कभी नहीं खोज पाया।
अकबर महाराणा प्रताप के जाल में फंसकर उस रेगिस्तान में अपनी सेना का एक बड़ा भाग गवां बैठा था। पुरे सात माह तक मेवाड़ में रहने के बाद भी अकबर महाराणा प्रताप को पकड़ नहीं पाया।
अकबर ने शाहबाज खान के नेतृत्व में तीन बार और अब्दुल रहीम खान-खाना के नेतृत्व में एक बार महाराणा प्रताप के विरुद्ध अपनी विशाल सेना भेजी लेकिन प्रत्येक बार उसकी सेना पिट-पिटाकर वापस लौट गई।
मेवाड़ पर विजय प्राप्त करना अकबर के लिए इतना महत्वपूर्ण था कि वह लगातार 9 वर्षों तक मेवाड़ पर आक्रमण करता रहा और हर बार भारी क्षति उठाते हुए वापस लौटता रहा। अंत में थक हार कर अकबर ने महाराणा को भूल जाना ही उचित समझा। फिर मेवाड़ की तरफ देखने की उसकी कभी हिम्मत नहीं हुई।
NOTE : This is the complete Maharana Pratap biography in Hindi. Rana Pratap Singh was a brave Indian who live his whole life only for his motherland and his freedom. He was real SUN of Indian history. We salute Maharana Pratap Singh for his great contribution to Sanatan history.
This is my little effort to write Maharana Pratap biography in Hindi just for only telling you about our great historical personality.